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: इतिहास के पन्नों मे 1857 की क्रांति के योद्धा महाराणा बख्तावर सिंह को नही मिल सका वह सम्मान जिसके वे हकदार थे

Admin

Sun, Feb 5, 2023
अमझेरा मे स्थित अमर शहीद महाराजा बख्तावरसिंह का महल

सात वर्ष की आयु मे हुआ था राज्याभिषेक,33 वर्ष की आयु मे अंग्रेजों पर किया था पहला हमला,4 माह मे अंग्रेजों पर 4 बार आक्रमण कर छुडा दिये थे अंग्रेजो के छक्के

अभिजीत पंडित
अमझेरा। 1857 की क्रांति का उल्लेख इतिहास के पन्नों मे दर्ज है। लेकिन इस क्रांति के कई योद्धाओं का उल्लेख आज भी देश की युवा पीढ़ी को इन इतिहास की किताबो मे पढने को नही मिल पा रहा है। अमझेरा रियासत के महान योद्धा अमर शहीद महाराजा बख्तावर सिंह के उल्लेख के बिना 1857 की क्रांति का इतिहास व्यर्थ है। महाराजा बख्तावर सिंह इस क्रांति के एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अंग्रेजों से अपनी रियासत से सुरक्षा के बजाय भातर माता को उनकी पराधीनता की बेड़ी से मुक्त करना अपना मकसद बनाया था। निडरता और निर्भीकता के साथ अंग्रेजों के छक्के इस महान योद्धा ने छुड़ा दिये थे। 1857 की क्रांति को करीब 165 वर्ष का समय हो चुका है वही देश को आजाद हुए 75 वर्ष हो चुके है। लेकिन इस महान योद्धा को न तो इतिहास मे वह स्थान मिल सका जिसके सम्मान के वै हकदार थे और नाही अमझेरा मे उनके किले का संरक्षण हो सका। वैसे इस बार जरूर उद्योग मंत्री राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव किले के संरक्षण को लेकर विशेष प्रयास कर रहे है लेकिन उनके प्रयास कब रंग लायेगे यह तो आने वाले समय मे पता चलेगा।

https://youtu.be/U-X7j5mrhBg
अमर शहीद महाराणा बख्तावरसिंह के महल का ड्रोन विडीयो

जिस सम्मान के हकदार थे महाराजा बख्तावर सिंह वह आज तक नहीं मिल सका-
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में सम्पूर्ण भारत में मालवा क्षेत्र की एक छोटी सी रियासत अमझेरा ही ऐसी रियासत थी जिसके समक्ष न तो दिल्ली के बादशाह की बादशाहत पेशवा की पेशवाई और महारानी झाँसी की सत्ता खो जाने जैसा कोई भय था तथा न ही अंग्रेजों ने अमझेरा के ऊपर कोई जोर जबरदस्ती की थी। केवल भारत माता को विदेशी परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने की टीस ही इस युवा राजा को उद्वेलित किये जा रही थी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमझेरा के राजा बख्तावरसिंह ही एकमात्र ऐसे योद्धा रहे हैं जिन्होंने निस्वार्थ भाव से एकमात्र भारतमाता को दासता की बेड़ियों से मुक्त करवाने के उद्देश्य से ही अंग्रेजों पर आक्रमण किया था, लेकिन इतिहासज्ञों ने इस तथ्य को अभी तक जनता से क्यों छुपाये रखा? यह शोध का विषय है।

भारतीय इतिहासकार स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमझेरा के राजा बख्तावरसिंहजी राठौर को वह सम्मान नहीं दे सके जिसके वे हकदार है। इसका कारण यह भी हो सकता है कि हमारा इतिहास हमेशा सम्राटो बादशाहों, शहनशाहों और बड़े-बड़े महाराजाओं के इर्द-गिर्द अधिक घुमता नजर आता है। बख्तावरसिहजी एक छोटी सी रियासत के राजा थे और राजा के संगी साथी और प्रजा मूल रूप से किसान और भील-भीलाले (वनवासी) थे. अत छोटे लोगों की कुर्बानी और जीवन शैली का विश्लेषण इतिहास से सदैव नदारद होते आया है। यह भारत का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है ?

अमझेरा महल मे महाराजा की अश्वरोही प्रतिमा

ज्ञातव्य है कि अमझेरा के अमर शहीद महाराजा बख्तावर सिंह जी ही 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में एकमात्र ऐसे राजा रहे है जिन्होने अंग्रेजों ने राजा होने के बाद भी सरेआम फांसी पर लटकाया और मरणोपरांत उनकी पार्थिव देह को भी दिन भर फाँसी पर लटकाये रखा ।

आजादी के 75 वर्षों के दौरान अमझेरा के इस रण बांकुरे की एक मात्र निशानी अमझेरा का किला प्रशासनिक उपेक्षाओं का शिकार होकर पूर्णत खंडहर में तब्दील हो चुका है। अमझेरा के अमर शहीदों की स्मृतियों को चिर-अक्षुण्ण रखने के लिये अमझेरा में एक भव्य शहीद स्मारक निर्माण की अत्यावश्यकता है। प्रशासनिक स्तर पर इस हेतु पहल की जाना अमझेरा के अमर शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

अमझेरा के अमर शहीद महाराजा बख्तावर सिंह जी राठौर का जीवन परिचय

जन्म- 14 दिसम्बर सन् 1824 अमझेरा के राठौर राजवंश के कुल दीपक एवं राजकुमार के रूप में।
पिताः-महाराजा राव अजीत सिंह जी माता महारानी भटियाणी जी इन्द्रकुंवर ।
राज्याभिषेक:- 21 दिसम्बर 1831 को (सात वर्ष की अल्पायु में ) पिता महाराजा अजीतसिंह जी के निधन से ।
अंग्रेजों पर पहला आक्रमणः- 02 जुलाई 1857 की रात्रि में भोपावर छावनी पर हमला करके अंग्रेजों को भागने पर - मजबूर कर दिया एवं भोपावर छावनी पर कब्जा करके सारा धन व हथियार लूट कर नोपावर छावनी में आग लगा दी।
अंग्रेजों पर दूसरा आक्रमण:- 10 अक्तूबर 1857 को भोपावर छावनी पर पुन हमला करके छावनी कब्जे में कर ली व 11 अक्तूबर को मालवा मील पल्टन के सैनिक मुख्यालय सरदारपुर पर भी भीषण हमला करके तीन घंटे की घमासान लड़ाई के बाद सरदारपुर छावनी पर भी कब्जा कर लिया ।
अंग्रेजों पर तीसरा आक्रमण:- 16 अक्तूबर 1857 को मानपुर गुजरी ब्रिटिश सैन्य छावनी पर कब्जा करके कमांडर कर्नल लिडस्ले एवं विशेष तोपों के साथ तैनात कप्टन कॅन्टीज एवं अश्वारोही सेना के प्रभारी जनरल क्लार्क को पराजित कर सैकड़ों ब्रिटिश सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया ।
अंग्रेजों पर चोथा आक्रमण:- 18 अक्तूबर 1857 को मण्डलेश्वर छावनी पर चौतरफा आक्रमण करके मण्डलेश्वर छावनी पर कब्जा कर लिया। क्रांतिकारियों के सम्मुख हथियार डालकर कैप्टन केन्टीज एवं जनरल क्लार्क महू नाग निकले।
गिरफ्तारी:- संधिवार्ता के बहाने धोखे से लालगढ़ से बुलवाकर तिरला के पास दिनांक 11 नवम्बर 1857 को महाराजा बख्तावरसिंहजी को गिरफ्तार कर दिनांक 13 नवम्बर 1857 को महू जेल में डाल दिया ।
सजा:- 21 दिसम्बर 1857 को झूठे मुकदमें में फसाकर अंग्रेज अधिकारियों ने फांसी की सजा सुना दी। ज्ञातव्य है कि ब्रिटिश सेना के ए.जी.जी. राबर्ट हेमिल्टन ने महाराजा बख्तावरसिंहजी को असीरगढ़ के किले में कैद की सजा सुना दी थी लेकिन बाद में किन परिस्थितियों के दबाव में आकर उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई ? यह खोज का विषय है।

फांसी - 10 फरवरी 1858 को प्रातः नौ बजे इंदौर में सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटकाया गया तो फांसी का फन्दा महाराजा बख्तावर सिंह जी का भार नहीं सहन कर सका और टूट गया। दोबारा पुनः मोटी रस्सी का फंदा बनाया गया, जिसे महाराजा ने स्वयं अपने हाथों से गले में डालकर मौत का वरण कर लिया । अंग्रेजों ने दिन भर महाराजा बख्तावर सिंह जी की लाश को फांसी के फंदे पर लटकाए रखा । और इस तरह अमझेरा का यह वीर भारत माता की आजादी की बलिवेदी पर अमर शहीद हो गया ।

1857 की क्रांति मे शहीद होने वाले अमझेरा के 29 अमर शहीद(देखे सुची )

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